1
महान अनुष्ठान के मध्य
सप्तपदी की रस्म
जैसे ही सम्पन्न की हमने
मन में किसी ने कहा जैसे
लो सात जन्मों के कांट्रेक्ट पर
दस्तखत हो गए तुम्हारे
2
दोनो नितांत अपरिचित
परस्पर आँखों में
अपने-अपने भविष्य को
फलित होता देख रहे थे
जो कहीं से स्वप्न नहीं था
दोनो की बांहें लिपटी
और चारो हथेलियां एक हो गई
एक पवित्र शपथ ने जन्म लिया
चारो हाथों की लकीरें तुम्हारी
दोनो की दृष्टि मिली
शपथ ने शपथ को जनमा
चारो आंखो के सपने तुम्हारे
और फिर सबकुछ एकाकार हो गया
3
एक यात्रा का प्रारम्भ था वह
देह से मन तक की
दृष्टि से क्षितिज तक की
प्रकृति से पुरुष तक की
या साकार से निराकार तक की
जब साधक की भांति
देहयज्ञ में अपनी-अपनी
मन-प्राण-आत्मा की
आहूतियां डाली थी हमने
और उसने मेरी धरती में
प्रणय बीज बोए थे
अनुभूतियों का विराट विश्व था
मेरे समक्ष
4
दोनो की बाहें अपने-अपने कान्धे पर
लटकी बेजान
दोनो की आंखों मे उगे नागफेनी
टूटे सपनो की छोटी छोटी किरचियां
यह भी किसी दृष्टि से
स्वप्न नही था
5
सम्बन्ध के गणित में
यह भूल
हमारी थी, तुम्हारी थी
या उस विधाता की
इस जटिलता को
कब जनमा था हमने
स्मरण है गणित का वह सूत्र
पहले का करी तब करी भागा
सगर जोड़ तब अंत घटावा
कोई सम्बन्द सूत्र होता नहीं ऐसा
बस उनके गुणात्मक परिणाम
ही तो होते हैं
उम्मीद है सात जन्म के
कांट्रेक्ट का
यह आखरी जन्म हो शायद
इस जन्म में निभाने का
प्रश्न फिर भी शेष है।